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आ प्र द्र॑व परा॒वतो॑ऽर्वा॒वत॑श्च वृत्रहन् । मध्व॒: प्रति॒ प्रभ॑र्मणि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā pra drava parāvato rvāvataś ca vṛtrahan | madhvaḥ prati prabharmaṇi ||

पद पाठ

आ । प्र । द्र॒व॒ । प॒रा॒ऽवतः॑ । अ॒र्वा॒ऽवतः॑ । च॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । मध्वः॑ । प्रति॑ । प्रऽभ॑र्मणि ॥ ८.८२.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:82» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (उप+क्रमस्व) हे भगवन् ! सबके हृदय में विराजमान होओ (धृष्णो) हे निखिल विघ्नविनाशक ! (धृषता) परमोदार चित्त से (जनानाम्) मनुष्यों के हृदय को (आ+भर) पूर्ण कर, (अदाशूष्टरस्य) जो कभी दान प्रदान नहीं करता, उसके (वेदः) धन को छिन्न-भिन्न कर दे ॥७॥
भावार्थभाषाः - धनसम्पन्न रहने पर भी जो असमर्थों को नहीं देता, उसका धन नष्ट हो जाय ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! उप+क्रमस्व=सर्वत्र विराजस्व। हे धृष्णो=विघ्नविनाशक ! धृषतः=परमोदारेण चेतसा। जनानाम्=चेतांसि आभर। अदाशूष्टरस्य=अत्यन्तम्= अत्यन्तमदातृतमस्य। वेदो धनं सं हरेति शेषः ॥७॥